गजब! प्रमोद गोयल और चंद्रप्रकाश बाटा समेत कई अन्य बागी भाजपा नेता भी टिकट के दावेदार….

संदीप तोमर


रुड़की। दो बार रुड़की में भाजपा से विधायक रहे सुरेश चंद जैन ने 2017 में तत्कालीन राजनीतिक परिस्थियों के कारण भाजपा से टिकट न मिलने पर कांग्रेस में शामिल हो विधानसभा चुनाव लड़ा। चुनावी हार के बाद वह पार्टी से भले बाहर हो,लेकिन संघ और पार्टी के विभिन्न अनुसांगिक संगठनों के कार्यक्रमों में वह गाहे-बगाहे नजर आ जाते हैं। यहां तक कि हाल ही में पार्टी नेता सतीश कौशिक के होटल में हुए झगड़े की घटना को लेकर कोतवाली गंगनहर में हुए भाजपा कार्यकर्ताओं के उस धरना प्रदर्शन में भी वह शामिल हुए थे,जिसमें मौजूदा भाजपा विधायक प्रदीप बत्रा नही पहुंचे थे। खैर पार्टी से बाहर रहते हुए संघ आशीर्वाद या व्यक्तिगत भाजपा में दौड़ धूप के बावजूद जब तक औपचारिक तौर पर पार्टी में एंट्री न हो तब तक सुरेश चंद जैन किसी चुनाव के लिए पार्टी टिकट के दावेदार कतई नही हो सकते,किन्तु जितना यह सच है उतना ही यह भी सच है कि इस तरह पार्टी से बगावत करने वाले व्यक्ति द्वारा यदि पार्टी में शामिल होकर भी टिकट की दावेदारी की जाए तो तमाम चर्चाएं तो होती ही हैं,साथ ही निष्ठावान और बुरे दौर में भी पार्टी के साथ खड़े रहने वाले कार्यकर्ताओं का मनोबल भी गिरता है।
ऐसा ही कुछ अब उन नेताओं की मेयर टिकट को लेकर की जा रही दावेदारी को लेकर हो रहा है,जिन्होंने कभी पार्टी से बगावत कर चुनाव लड़ा। ऐसे नेताओं की दावेदारी से निष्ठावान कार्यकर्ता भौचक्क हैं। इन नेताओं में पहला नाम है प्रमोद गोयल का। व्यक्तिगत रूप से प्रमोद गोयल एक भले और सज्जन इंसान होने के साथ ही मृदु भाषी हैं। यह भी सच है कि उनके बताए अनुसार वह 1985 से भाजपा में सक्रिय हैं और 2003 का रुड़की पालिका चुनाव भी उन्होंने लड़ा था। उनका दावा है कि इस चुनाव में उन्हें, (पार्टी को नही?) 31 प्रतिशत वोट मिले थे। जाहिर है गौशाला समेत विभिन्न सामाजिक संस्थाओं से जुड़े प्रमोद गोयल ने मेयर टिकट के लिए प्रस्तुत अपने बायोडाटा में यह सब जानकारी भाजपा संगठन के नेताओं को दी होंगी। अब पता नही उन्होंने यह जानकारी भी संगठन नेताओं को दी है या नही? कि 2007 में उन्होंने भाजपा से बगावत कर रुड़की विधानसभा का चुनाव उस दौरान उमा भारती द्वारा गठित भारतीय जनशक्ति पार्टी से लड़ा था। पूर्ववर्ती रुड़की पालिका क्षेत्र में चैयरमैन पद पर औसतन 12 से 13 हजार वोट भाजपा प्रत्याशी को मिलने का इतिहास रहा है फिर यदि प्रमोद गोयल के इस दावे को सही मान लें कि 2003 में जो कथित 31 प्रतिशत वोट वह खुद को मिलने का दावा कर रहे हैं वह उन्हें 2007 के विधानसभा चुनाव में क्यों नही मिला था? दरअसल सच तो यह है कि उमा भारती की पार्टी भारतीय जनशक्ति तब शैशव काल में थी और गोयल द्वारा व्यक्तिगत वजूद पर लड़े गए विधानसभा के इस चुनाव में प्रमोद गोयल को मात्र 178 वोट मिले थे। इस सबको देखते हुए उनकी मेयर टिकट पर भाजपा से दावेदारी को लेकर चर्चा होना व कार्यकर्ताओं का नजर गड़ाना, स्वाभाविक ही है।
इस तरह के दूसरे नेता हैं पूर्व पार्षद चंद्रप्रकाश बाटा। यूं यह भी दिलचस्प है कि कभी ईसाई मिशनरी के लोगों पर हमले,कभी कथित गौकशी को लेकर मुस्लिम वर्ग के लोगों से विवाद और कभी हिन्दू वर्ग के ही पूर्व मेयर यशपाल राणा से विवाद को लेकर चर्चित चंद्रप्रकाश बाटा के समर्थक आज उन्हें सर्व धर्म प्रेमी व्यक्ति के रूप में प्रचारित कर रहे हैं। खैर चुनावी माहौल में यह सब करना भी पड़ता है,किन्तु भाजपा के स्तर पर बात करें तो चंद्रप्रकाश बाटा ने अपने वार्ड में पिछला 2013 का चुनाव पार्टी से बगावत करते हुए भाजपा प्रत्याशी संजीव कक्कड़ के सामने आकर लड़ा था। बाटा जीत गए थे जबकि भाजपा हार गई थी। बाटा के सम्बंध में एक दिलचस्प बात यह है कि उनके समर्थक उनके पार्टी से टिकट मांगने की बात करते हुए यह भी दावा साथ साथ ही कर रहे हैं कि पार्टी ने टिकट न दिया तो निर्दलीय चुनाव लड़ा जाएगा। यानि चुनाव से पहले ही पार्टी से बगावत के संकेत। हालांकि इस विषय पर अभी तक सीधे चंद्रप्रकाश बाटा ने कोई बयान नही दिया है किंतु ऐसा बयान देने वाले समर्थकों के साथ वह लगातार बैठकें कर रहे हैं। ऐसे में बाटा की दावेदारी और “गांव बसा नही मांगने वाले पहले आ गए” वाली कहावत की तर्ज पर उनके समर्थकों द्वारा अभी से बगावत के संकेत दिए जाने को लेकर भी निष्ठावान कार्यकर्ता हैरान हैं। 2013 में ही मेयर पद पर पार्टी से बगावत कर लड़ने वाले शिक्षक अनिल शर्मा की दावेदारी भी इसी जद में है। हालांकि अनिल शर्मा की दावेदारी शोर मचाकर कम साइलेंट ज्यादा है,किन्तु उनके 2013 में चुनाव लड़ने के कारण हार का मुहं देखने वाले पार्टी प्रत्याशी महेंद्र काला का उन्हें लेकर विरोध साइलेंट होते हुए भी घना शोर मचा रहा है। खैर इस तरह के कई अन्य नेता भी हैं किन्तु उनमें से किसी की दावेदारी नही है जिस एक आध की है भी,वह चुनाव लड़ते समय भाजपा में शामिल नही था।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *