लोकसभा चुनाव: प्रदीप बत्रा की पकड़ से बाहर या मौन स्वीकृति?जो भी हो विधायक का कोई सूबेदार हाथ तो कोई रहा हाथी के साथ!

रुड़की(संदीप तोमर)पता नही रुड़की भाजपा विधायक प्रदीप बत्रा की अपने सूबेदारों पर पकड़ ढीली हो गयी है?या फिर किसी तरह की मौन स्वीकृति वाली बात थी?जो भी हो पर इस लोकसभा चुनाव में यदि किसी भाजपा विधायक के राजनीतिक सूबेदार खुलेआम इधर-उधर भागते दिखे तो वह स्थानीय भाजपा विधायक प्रदीप बत्रा ही हैं।
व्यक्तिगत रूप से विधायक प्रदीप बत्रा की भाजपा और पार्टी प्रत्याशी डा.निशंक के प्रति निष्ठाओं को लेकर न किसी के मन में कोई सवाल है और न ही प्रदीप बत्रा ने ऐसा कोई कृत्य किया है। अलबत्ता यह भी सच है कि उनके संयोजन में रुड़की विधानसभा अंतर्गत हुई यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ की जनसभा उनके दावे के उलट विफल रही थी। खैर जहां तक प्रदीप बत्रा के पार्टी प्रत्याशी के लिए काम करने की बात है तो व्यक्तिगत वह कहीं बहुत आगे तो कहीं बहुत पीछे भी नजर नही आये। अलबत्ता उनके राजनीतिक सूबेदारों ने उनकी जमकर किरकिरी कराई। अब या तो उनकी पकड़ अपने बिल्कुल करीबी राजनीतिक सूबेदारों पर ढीली है?या फिर किसी स्तर पर उनकी कोई मौन स्वीकृति की बात थी?यह भाजपा को देखना चाहिए। किन्तु क्षेत्र में किसी विधायक के बेहद निजी समझे जाने वाले लोग इस तरह खुलेआम अपने विधायक और उनकी पार्टी की बात से बेपरवाह हो,दूसरे दलों के नेताओं का स्वागत और समर्थन करते नजर आए तो वह प्रदीप बत्रा ही हैं। मतदान से तीन दिन पूर्व उनके निजी सचिव केपी सिंह और एक करीबी ठेकेदार अनीस अहमद खुलेआम कांग्रेस प्रत्याशी अमरीश कुमार का स्वागत करते नजर आए। यह दोनों बीजेपी से सीधे नही जुड़े हैं,किन्तु उनका यह स्वागत करना उजागर होने के बाद विधायक द्वारा कोई कदम न उठाए जाने को लेकर तमाम सवाल खुद बीजेपी के लोगों के बीच खड़े हो रहे हैं। बात सिर्फ यहीं तक सीमित नही। दरअसल स्वागत की इन गल बहियों के प्रकाश में आने से पहले,विधायक द्वारा अपने प्रतिनिधि बनाये गए शेरपुर गांव निवासी प्रमोद सैनी नामक युवक द्वारा शोसल मीडिया पर बसपा प्रत्याशी अंतरिक्ष सैनी के समर्थन में पोस्ट सामने आ चुके थे। यही नही प्रमोद सैनी ने खुलेआम बसपा प्रत्याशी अंतरिक्ष सैनी के समर्थन के लिए हुई सैनी समाज की बैठक और फिर मायावती की रैली में भी भाग लिया।(फोटो व प्रत्यक्षदर्शी रुड़की हब के पास मौजूद हैं) खैर यहां दिक्कत इस बात से कतई नही कि प्रमोद सैनी बसपा प्रत्याशी का समर्थन करें तो वह कोई गलत बात है। यह उनका संवैधानिक अधिकार है,इसी तरह वह किसी भी अन्य हर उस गतिविधि को करने के लिए स्वतंत्र हैं जो उन्हें संविधान सभी नागरिकों के साथ प्रदान करता है। किंतु जिस तरह संविधान सभी को स्वतंत्रता का अधिकार देता है,उसी तरह एक चीज होती है नैतिकता और इस पर नजर रखता है पूरा समाज। दरअसल यहां सारा मसला ही प्रमोद सैनी की नैतिकता का है। यदि उन्हें बसपा का ही समर्थन करना था तो वह विधायक प्रतिनिधि के पद का पहले त्याग करते। उन्होंने ऐसा नही किया। ऐसे में उनकी नैतिकता उनके साथ,किन्तु यहीं से सवाल फिर प्रदीप बत्रा की ओर खड़ा होता है कि क्या उनकी जिम्मेदारी नही बनती कि वह ऐसे व्यक्ति को अपनी ओर से दिए गए अहम पद से हटाएं और किसी जिम्मेदार पार्टी कार्यकर्ता को इस पद की जिम्मेदारी सौंपे। अभी तक तो प्रदीप बत्रा ने ऐसा नही किया है। भविष्य में करेंगे या नही?यह देखने वाली बात होगी और इसी से उनकी मूक समर्थन वाली बात को लेकर भी स्थिति साफ होगी। यह इस दृष्टि से और ज्यादा अहम है कि लोकसभा चुनाव के शुरुवाती चरण में प्रदीप बत्रा ने अपने एक प्रतिनिधि तनुज राठी को शोसल मीडिया पर उनकी एक पोस्ट को लेकर कथित रूप से पद से हटा दिया था,जबकि वह पोस्ट भी पार्टी प्रत्याशी के खिलाफ नही,पक्ष में थी। इसी तरह उनकी जनसम्पर्क अधिकारी विक्रांत त्यागी का ऐन चुनाव के समय महाराष्ट्र भृमण भी चर्चा में रहा।

कई समर्थक कर रहे कांग्रेस की जीत के दावे

विधायक प्रदीप बत्रा के कई समर्थक ऐसे हैं जो इस चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी अमरीश कुमार की जीत के दावे कर रहे हैं। इनसे रूबरू हुए कई प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया कि ये समर्थक पूरे आत्मविश्वास के साथ इस बात पर शर्त भी लगाने को तैयार हैं। ऐसे में उनका अति आत्मविश्वास किसी गद्दारी की शंका भी पैदा करता है।

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