फुरकान,शहज़ाद या डा.शमशाद? कौन होगा मुस्लिम समाज में प्रभावी?

एम हसीन

रुड़की। शहर में मुस्लिम मतदाताओं की संख्या क़रीब 28 हज़ार है और इनका बहुमत अपने प्रत्याशी को दिलाने के लिए कलियर विधायक फुरकान अहमद, पूर्व विधायक मु. शहज़ाद और मंगलौर नगर पालिका अध्यक्ष के बड़े भाई डा. शमशाद ने पूरी ताकत झोंक दी है। कांग्रेस विधायक फुरकान अहमद पार्टी प्रत्याशी रेशू राणा के साथ खड़े हैं जबकि मु. शहज़ाद उक्रांद समर्थित निर्दलीय सुभाष सैनी के साथ। इसी प्रकार बसपा उपाध्यक्ष डा. शमशाद पार्टी प्रत्याशी पूर्व सांसद राजेंद्र बाड़ी को चुनाव लड़ा रहे हैं।

तीनों की रुड़की में सक्रियता का कारण कलियर विधानसभा क्षेत्र की राजनीति हैं और तीनों ही एक-दूसरे के प्रतिद्वंदी हैं। फुरकान अहमद कलियर विधायक हैं और मु. शहज़ाद उनके सामने विधानसभा चुनाव हारते रहे हैं। मु. शहज़ाद बसपा से निष्कासित हैं और डा. शमशाद कलियर क्षेत्र में बसपा के भावी प्रत्याशी हैं। फुरकान अहमद बिरादरी से झोझा हैं और बाकी दोनों तेली। लेकिन दावा तीनों का ही मुस्लिम लीडरशिप पर है। वैसे रुड़की की राजनीति में मंगलौर की राजनीति का भी दख्ल है। वहां के कांग्रेस विधायक क़ाज़ी निजामुद्दीन रेशू राणा के स्वाभाविक समर्थक हैं और उनके सामने बसपा प्रत्याशी के रूप में हारे हाजी सरवत करीम अंसारी स्वाभाविक रूप से राजेंद्र बाड़ी को चुनाव लड़ा रहे हैं।उपरोक्त तीनों ही राजनीतिज्ञ हैं और उनके अपने हित हैं। इनके हितों का अगर मुस्लिम धयान रखेंगे तो बिखराव का शिकार होंगे। ठीक है कि मुस्लिम लीडर अपने हित के लिए काम करेंगे लेकिन मुस्लिम अवाम के लिए यह सोचने की बात है कि उसके हित किसमें हैं? बिखराव में या एकजुटता में? एकजुटता हो तो किसके पक्ष में हो?

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