Bhagat Singh Koshyari: एकांतवास में जाएंगे या फिर सियासत में छाएंगे कोश्यारी? सियासी हलकों में तैर रहे ये सवाल

सियासी हलकों में यह सवाल तैर रहा है कि कोश्यारी एकांतवास में जाकर अध्ययन में जीवन बिताएंगे या फिर सियासत में एक शक्तिपीठ की तरह अपने समर्थकों की मुराद पूरी करने का माध्यम बनेंगे। धामी सरकार दायित्व बांटने की तैयारी कर रही है। दायित्वों के लिए कई कार्यकर्ता दिग्गज कोश्यारी की परिक्रमा भी कर रहे हैं। यह दायित्वों से पता चलेगा कि कोश्यारी का सत्ता में अब कितना प्रभाव है?


महाराष्ट्र के राज्यपाल पद से इस्तीफा देने के बाद भगत सिंह कोश्यारी को लेकर भाजपा में हलचल है। बेशक कोश्यारी ने राज्यपाल की कुर्सी त्यागने के बाद एकांतवास में रहकर अध्ययन करने की इच्छा जाहिर की है लेकिन जो खांटी सियासतदां भगतदा को जानते हैं, उन्हें मालूम है कि वह राजनीति से शायद ही दूर रह पाएंगे। हालांकि अभी यह तय नहीं है कि उनका अगला कदम क्या होगा।इसीलिए सियासी हलकों में यह सवाल तैर रहा है कि कोश्यारी एकांतवास में जाकर अध्ययन में जीवन बिताएंगे या फिर सियासत में एक शक्तिपीठ की तरह अपने समर्थकों की मुराद पूरी करने का माध्यम बनेंगे। पार्टी से जुड़े एक नेता कहते हैं, यह इस बात पर निर्भर करेगा कि भगतदा अपना अगला ठिकाना पिथौरागढ़ को बनाते हैं या देहरादून के डिफेंस कालोनी में अपने किराये के घर को। फिलहाल कोश्यारी की घर वापसी को लेकर सियासी निहितार्थ टटोले जाने लगे हैं।
महत्वाकांक्षी कोश्यारी के लिए आगे क्या?
भगत सिंह कोश्यारी को बहुत महत्वाकांक्षी राजनेताओं में माना जाता है। वह भाजपा के अकेले ऐसे नेता है जिन्होंने अपनी राजनीतिक सक्रियता में ढलती उम्र को बाधा नहीं बनने दिया। उम्र की जिस दहलीज पर आकर राजनेता सक्रिय राजनीति से दूरी बना लेते हैं, कोश्यारी लगातार सक्रिय रहे और राज्यपाल तक की कुर्सी तक पहुंचे। उनके बारे में यह माना जाता है कि जब-जब भाजपा सत्ता में होती है कोश्यारी चुप नहीं बैठे। नित्यानंद स्वामी और जनरल खंडूड़ी सरकार में उलटफेर में उनकी भूमिका किसी से छुपी नहीं है। वह विधायक, प्रदेश अध्यक्ष, मुख्यमंत्री, सांसद सभी ओहदों पर रह चुके हैं। इस लिहाज से देखा जाए तो पार्टी की परंपरा के लिहाज से राजनीति में 80 वर्ष की आयु पार इस नेता के लिए मार्गदर्शक मंडल में ही जगह बचती है। ऐसे में सवाल है कि उनका अगला पड़ाव क्या होगा?
समर्थकों के लिए एक और दरवाजा खुल गया
कई दशकों की सियासत के बाद कोश्यारी के पीछे समर्थकों की एक बड़ी फौज है। जब कोश्यारी राज्यपाल थे, तब सांविधानिक पद की मर्यादाएं थीं। इसके बावजूद उनके अनुयायियों और उनके बीच प्रोटोकॉल कभी आड़े नहीं आया। वह जितनी बार भी देहरादून आए, उन्होंने राजभवन या राज्य अतिथि गृह की मेहमाननवाजी के बजाय अपने किराये के घर में वक्त गुजारा और घर पर जुटने वाली समर्थकों की भीड़ को पसंद किया। अब तो वह ऐसे सभी बंधनों से मुक्त हैं। ऐसे में उन समर्थकों के लिए वे ऑक्सीजन की तरह होंगे, जो सरकार में सत्ता प्रसाद के आकांक्षी हैं। कोश्यारी के रूप में ऐसे समर्थकों के लिए दरवाजा खुल गया है। वे कोश्यारी को ऐसे शक्तिपीठ के रूप में देखना चाहेंगे जहां माथा टेककर वह अपनी मनचाही मुराद पूरी कर सकें।दायित्व बताएंगे कोश्यारी का सत्ता में प्रभाव

धामी सरकार दायित्व बांटने की तैयारी कर रही है। दायित्वों के लिए कई कार्यकर्ता दिग्गज कोश्यारी की परिक्रमा भी कर रहे हैं। यह दायित्वों से पता चलेगा कि कोश्यारी का सत्ता में अब कितना प्रभाव है? जिन परिस्थितियों में कोश्यारी को राज्यपाल की कुर्सी छोड़नी पड़ी है, उसे देखते हुए सियासी हलकों में यह चर्चा आम है कि अब मोदी-शाह-नड्डा के दरबार में उनका वो पुराना जलवा नहीं रहा। माना कि राजनीति अनिश्चितताओं का खेल है लेकिन फिलहाल बड़े नेताओं को उनके दरबार में हाजिरी लगाने की शायद ही जरूरत पड़ेगी। कोश्यारी के समर्थक माने जाने वाले कई नेता धामी-त्रिवेंद्र-अजय भट्ट आज खुद अपने आप में सत्ता के ध्रुव बन चुके हैं।
भगत सिंह कोश्यारी हमारे वरिष्ठ नेता हैं। उनका लंबा राजनीतिक अनुभव रहा है। उन्होंने कहा है कि वह अब अध्ययन करना चाहते हैं। निश्चित तौर पर पार्टी को उनके राजनीतिक अनुभवों का लाभ मिलेगा। लोकसभा और निकाय चुनावों में पार्टी उनका भी मार्गदर्शन प्राप्त करेगी

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *