पंचायत चुनाव की लड़ाई भले ही राजनीतिक दलों के सिंबल की न हो, लेकिन बल की तो है। यही कारण है कि चुनाव की तारीख घोषित होते ही बैठकों का दौर शुरू हुआ और स्थानीय स्तर पर नेताओं की जिम्मेदारियां भी तय कर दी गईं। विकसित भारत के लिए गांवों के विकास की बात तेज हो गई है। गांव, ब्लाक और जिले की सत्ता मजबूत हो इसके लिए कानूनी जामा भी पहनाया गया है। ऐसे में उत्तराखंड में पंचायत चुनाव की तैयारी को राज्य के आखिरी आदमी के जनादेश की बारी से जोड़कर देखा जा रहा है। पंचायत को दोनों प्रमुख राजनीतिक दलों भाजपा-कांग्रेस की एक और परीक्षा मान सकते हैं।
विधानसभा चुनाव के ठीक पहले होने वाले चुनाव के परिणाम दोनों दलों में पंचायत कराएंगे। पंचायत चुनाव की लड़ाई भले ही राजनीतिक दलों के सिंबल की न हो, लेकिन बल की तो है। यही कारण है कि चुनाव की तारीख घोषित होते ही बैठकों का दौर शुरू हुआ और स्थानीय स्तर पर नेताओं की जिम्मेदारियां भी तय कर दी गईं। हाईकोर्ट की कुछ चिंताएं और सवाल हैं सरकार को संतुष्ट करना होगा और रोक हट सकती है।
राज्य के शहरी इलाकों के विकास और ग्रामीण इलाकों के विकास में अंतर स्पष्ट है। गांवों के विकास में तमाम बुनियादी जरूरतें शामिल हैं जो वर्षों पुरानी हैं और उन्हें पटरी पर आने में वर्षों लगेंगे। ऐसे में विकास की दौड़ में उन योजनाओं को शामिल किया जाए जो पंचायत घर और विकासखंडों में तैयार और लागू हों। राज्य में पलायन, भूस्खलन, पेयजल, जंगली जानवर आदि अन्य कारणों से गांव खाली हो रहे हैं, गांव की आबादी शहरों में शिफ्ट हो रही है गांवों का विकास सभी की प्राथमिकता में शामिल होना चाहिए।
चुनावों के नतीजे राज्य सरकार के कामकाज का होंगे आइना
चुनावी घोषणा के साथ दोनों दल इस बात की रणनीति तो बना रहे हैं कि कैसे गांवों में प्रधानों, जिलों में पंचायत अध्यक्षों की पहचान उनके दल हो जबकि कोशिश इस बात की होनी चाहिए कि कोई गांव राज्य के मानचित्र से विलुप्त न हो उन्हें बसाया कैसे जाए। राज्य की आज आवश्यकता गांवों में राजनीतिक पकड़ मजबूत बनाने से अधिक गांवों को मजबूती देने और सुविधा सम्पन्न बनाने की है। पंचायत चुनाव की पुरानी तस्वीर देखें तो भाजपा मजबूत रही है। राज्य के 13 जिलों में 11 जिला पंचायत अध्यक्ष भाजपा के पाले में हैं। जीत का ट्रैक रिकार्ड भी अच्छा है। हाल ही शहरी निकाय के चुनाव में भी बेहतर प्रदर्शन रहा है। पंचायत चुनाव के लिए भाजपा उन्हीं चेहरों की तलाश कर रही है जो जिताऊ के साथ विचारधारा का झंडा जरूर उठाकर चल रहे हों। भाजपा के लिए इन चुनावों के नतीजे राज्य सरकार के कामकाज का आइना होंगे। विकास का पहिया ग्रामीण इलाकों में दौड़ रहा है गांव के आखिरी मतदाता के जनादेश से साबित होगा।
कांग्रेस लंबे समय खुद को रेस में दूसरे नंबर पर बता रही है। इसका श्रेय पार्टी नेताओं को नहीं बल्कि इस राज्य के मतदाताओं को जाता है जिन्होंने लंबे प्रयास के बाद भी दो दलीय संघर्ष को बनाए रखा है। कांग्रेस के बड़े नेता भी अब हार के कारण को स्वीकार कर बैठे हैं और केंद्रीय नेतृत्व की नसीहत ने उन्हें एकता की माला जपने को मजबूर किया है। पंचायत चुनाव को लेकर कांग्रेस नेता गंभीर दिख रहे हैं। चुनाव की घोषणा के साथ पांच बड़े नेताओं की पंचायत बताती है कि इस बार खुद से नहीं भाजपा से लड़ना चाहते हैं। कांग्रेस नेता हार का कलंक धोना चाहते हैं अगर ऐसा करने में कामयाब रहे तो सचमुच 2027 के विधानसभा चुनाव में उनके पास गांवों की खोई हुई जमीन होगी।