टेलीकॉम कंपनियों ने अपनी मोबाईल दरें 42 फ़ीसदी तक बढ़ा दी हैं। साधारण भाषा मे इस का अर्थ यह हुआ कि हम अपने मोबाइल के जो मोबाइल रिचार्ज प्लान आज तक खरीद रहे थे,वह अब हमें 42 प्रतिशत महंगा मिलेगा। यदि इसमें प्रचलित सेस (कर) आदि जोड़ देंगे तो यह महंगाई प्रतिशत 50 के आंकड़े के आसपास होगी। यह कवायद जनता के लिए तो भारी बोझ होगी ही,वरन मोदी सरकार के खिलाफ़ भी दूरगामी परिणाम ला सकती है।
नरेंद्र मोदी जिन्होंने चुनावी अभियानों में युवा वोटर्स को टारगेट करते हुए,विभिन्न प्रलोभन देते हुए सत्ता की कुर्सी संभाली थी,वही युवा वोटर्स सरकार या टेलीकॉम कंपनियों के इस कदम से अब नाराज़ हो जायेंगे। होए भी क्यों ना? मोदी सरकार ने युवाओं को रोज़गार देने से बचने के लिए चालाकी से उन्हें अपने-अपने मोबाइल फोनों पर व्यस्त रखने के लिए आकर्षक मोबाइल रिचार्ज ऑफ़र उपलब्ध कराए थे, ताकि वह रोजगार को भूल जाये और अपने मोबाइल फोन पर टाइमपास करते रहे। आज तक 499 रुपये का मोबाइल रिचार्ज कूपन जिस के सहारे एक बेरोजगार युवा तीन महीने अपना टाइमपास कर लेता था,उसका अतिरिक्त खर्च अचानक 250 रुपये बढ़ गया है। पहले ही बेरोज़गार और ग़रीबी की मार झेल रही देश की युवा शक्ति के लिए, सरकार से सिवाय नाराज होने के और कोई रास्ता नहीं बचा है।
युवाओं की जेब पर मोदी सरकार का हाल में ये दूसरा बड़ा हमला है। इससे पूर्व, भारी जुर्मानों के प्रावधानों से युक्त मोटर वेहिकल क़ानून है। यूरोपीय देशों की तर्ज़ पर बना यह कानून भारत के संबंध में बिल्कुल अप्रासंगिक है। भारत जहां एक कृषिप्रधान देश है। यहां कुल 600 मिलियन युवाओं में जनसंख्या का 60 प्रतिशत भाग गांवो से आता है। जो प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से कृषि कार्यों से जुड़ा हुआ है। अपनी रोजमर्रा की जरूरतों के लिए आसपास के शहरी बाज़ारों में आने-जाने के इन युवाओं के पास अपनी या पड़ोसी से मांगी मोटरसाइकिल ही एक मात्र साधन होता है। पहले, मोटर व्हीकल कानून के उल्लघंन पर 100 रुपये का जुर्माना अदा करके जान छूट जाती थी,अब कम से कम 1000 रुपये देकर पुलिस से जान छूट जाए तो गनीमत है। आज बेरोजगारी के चलते किसी युवा के लिए सौ रुपये जुटाना एक भारी काम है,ऐसे में उसे सरकार के डाके के लिए हरवक्त हज़ार रुपये अपनी जेब में रखने पड़ते हैं।
सरकार के ये दो युवा-विरोधी काम, युवाओं में मोदी सरकार के लिए सहज आक्रोश पैदा कर सकते हैं। सरकार,जो आज महंगाई को नियंत्रित नहीं कर पा रही और साल दर साल जीडीपी दर को नीचे जाते देखने को मजबूर है,को चाहिए इन दो माइक्रो पहलू पर गौर करें, कहीं ऐसा ना हो,जनता सरकार की घूमा-फिराकर धन-वसूली की नीति से उकताकर अगले चुनाव में मोदी सरकार के अब तक फूले हुए गुब्बारे में चुपके से आलपिन न लगा दे।