अब बिरादरी के भरोसे चुनाव में न उतरे कोई सैनी नेता,रुड़की नगर निगम चुनाव से इस बात पर लगी मोहर

रुड़की(संदीप तोमर)। उक्रांद व पूर्व विधायक मौ.शहजाद के समर्थन से निर्दलीय रुड़की मेयर चुनाव में उतरे वरिष्ठ पत्रकार एवं लोकतांत्रिक जनमोर्चा संयोजक सुभाष सैनी के चुनाव परिणाम से इस बात पर पुख्ता मोहर लग गयी है कि भविष्य में कम से कम रुड़की व आसपास के क्षेत्र में तो किसी सैनी नेता को अपनी बिरादरी के बूते चुनाव लड़ने की नही सोचनी चाहिए।

चुनाव शुरू होने से पूर्व लोजमो द्वारा आयोजित सर्व समाज सम्मेलन में पूर्व विधायक मौ.शहजाद ने एक बात कही थी कि सैनी समाज पहले गैर सैनी को वोट देना सीखे,फिर वोट लेने की सोचे। सम्भवतः मौ.शहजाद अपनी कलियर की राजनीति के दृष्टिगत सैनी वोट पाने के फार्मूले से इस बात को कह रहे हों और इसके पीछे सहारनपुर की राजनीति के उस स्थापित तथ्य को देख रहे हों,जिसमें वहां सैनी समाज दूसरी बिरादरी के साथ वोट शिफ्टिंग कर लेता है। जहां तक मौ.शहजाद की बात है तो वह भी अपनी बिरादरी मुस्लिम तेली समाज का कोई बड़ा समर्थन सुभाष सैनी को नही दिला पाए हैं। लेकिन यह इतना महत्वपूर्ण नही,जितना सैनी समाज के समर्थन की बात है। खैर अब बात रुड़की व आसपास के क्षेत्र की करें तो यहां सैनी बिरादरी की राजनीतिक दिक्कत शहजाद की सोच से बहुत आगे इस रूप में बढ़ गयी है कि यहां सैनी बिरादरी अपने सजातीय प्रत्याशी को भी मतदान नही करती,वह भी तब जबकि सुभाष सैनी जैसा वह व्यक्ति चुनाव मैदान में उतरा हो,जिसे सैनी बिरादरी के मामले उठाने को लेकर बिरादरीवादी तक कहा जाने लगा था। हालांकि ऐसा नही कि अपने संगठन के जरिये उन्होंने रुड़की जिला बनाओ,बिजली,पानी, रोजगार आदि आम जनमानस के मुद्दों को लेकर कई वर्षों सर्व समाज के लिए संघर्ष किया। लेकिन वह कहीं न कहीं इस फार्मूले के द्रष्टिगत अपनी राजनीति को आगे बढ़ा रहे थे कि जब उनकी बिरादरी उनके साथ एकजुट दिखेगी तो ही दूसरे वर्ग के लोग उनके साथ जुटेंगे। उनकी यह सोच पिछले कुछ चुनावों को देखते हुए सही भी थी। मसलन प्रदीप बत्रा ने अपने 2008 के चेयरमैन और 2012 के विधायक चुनाव में जब अपनी बिरादरी पंजाबी समाज को अपने साथ एकजुट दिखाया,तभी वह मुस्लिम समेत अन्य वर्ग का समर्थन पा सके थे। शायद यही कारण है चुनाव से पूर्व सुभाष सैनी ने पहले सैनी युवा सम्मेलन आयोजित किया तो इसके एक पखवाड़े के भीतर ही सर्व समाज सम्मेलन किया। इन आयोजनों के बाद वह और उनके समर्थक दावे करने लगे थे कि सर्व समाज का बड़ा समर्थन,जिसकी शुरुवात सैनियों के 80 प्रतिशत से ज्यादा समर्थन से होगी,उन्हें चुनाव में मिलने वाला है। हालांकि इसे लेकर जब अन्य तमाम पिछले उदाहरणों के साथ ही इस वर्ष के लोकसभा चुनाव में बसपा प्रत्याशी अंतरिक्ष सैनी को बिरादरी का समर्थन न मिलने की बात कही जाती,तो सुभाष समर्थकों का तर्क होता कि निकाय चुनाव की तासीर अलग होती है,इसमें सैनी समाज सुभाष सैनी का समर्थन करेगा। इन बातों के साथ ही सुभाष सैनी के चुनाव दफ्तर उद्घाटन पर उमड़ी भीड़ व चली लहर से विश्लेषक भी मानने लगे थे कि सुभाष सैनी भले चुनाव हार जाएं,लेकिन उन्हें 10 से 12 हजार वोट मिल जाएंगी और वह एक नेता के रूप में स्थापित हो जाएंगे। लेकिन हुआ,इसके उलट। सैनी बिरादरी ने ही उन्हें बहुत कम वोट दिए। बल्कि चुनाव नतीजों से स्पष्ट है कि सैनी इलाकों में गौरव गोयल व मयंक गुप्ता को सुभाष सैनी से बहुत ज्यादा वोट मिला। इससे साफ हो गया है कि क्षेत्र में सैनी बिरादरी किसी भी चुनाव में अपने हिसाब से ही मतदान करती है,फिर चाहे अंतरिक्ष सैनी चुनाव लड़ रहे हों या सुभाष सैनी। इस लिहाज से साफ कहा जा सकता है कि सुभाष सैनी के एक्सपेरिमेंट के बाद कम से कम इस क्षेत्र में किसी सैनी नेता को अपनी बिरादरी के बूते तो चुनाव लड़ने की नही सोचनी चाहिए।

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