अब सुभाष सैनी को बहुत बड़े खतरे के रूप में भांपा भाजपा ने,बनायी गयी विशेष रणनीति-पूरे मामले को जानिये इस खास रिपोर्ट में…

रुड़की(संदीप तोमर)। लोकतांत्रिक जनमोर्चा के बैनर तले लंबे समय से रुड़की हितों के लिए संघर्षरत सुभाष सैनी बतौर निर्दलीय प्रत्याशी भाजपा के लिए गौरव गोयल की ही तरह बड़ी मुसीबत बन गए हैं। या कुछ स्थितियों को देखते हुए यह कहा जाए कि वह ताजा हालात में भाजपा के लिए गौरव गोयल से भी बड़ा खतरा दिख रहे हैं,तो शायद गलत न होगा। भाजपा इस खतरे को भांप चुकी है और उसने खतरे से निपटने के इंतजाम करने को अपनी रणनीति बना ली है। भाजपा की यह रणनीति कितना सफल होगी?इस बात को अगला सप्ताह तय करेगा,लेकिन एक बात ऐसी है जो भाजपा के साथ ही कांग्रेस के लिए भी बड़ी दिक्कत का सबब बन सकती है। वह यह कि सुभाष सैनी के भाजपा के लिए खतरा बनने की बात को कहीं परम्परागत रूप से भाजपा विरोधी समझा जाने वाला मुस्लिम वर्ग न भांप जाए और भाजपा इस खतरे से निपटने के इंतजामों में भी सफल न हो पाए।

दरअसल 2007 का विधानसभा चुनाव सुभाष सैनी लड़े थे,लेकिन यह चुनाव पूरी तरह धार्मिक आधार पर आधारित हो जाने के चलते उन्हें उनकी आशाओं से बहुत कम लगभग 2 हजार वोट मिल पाए थे। इस चुनाव के बाद लगातार जनसमस्याओं के लिए संघर्षरत रहने के साथ ही सुभाष सैनी ने एक काम जो मुख्यतः किया,वह था अपनी बिरादरी सैनी समाज की अपने साथ एकजुटता का। 2008 के पालिका चुनाव में मौजूदा विधायक प्रदीप बत्रा की जीत में सुभाष सैनी की बड़ी भूमिका रही थी। इसी तरह 2012 के विधानसभा चुनाव में भी वह प्रदीप बत्रा के सारथी बनकर उन्हें विधायक बनवाने में कामयाब रहे थे। उनके इस महत्व को शायद प्रदीप बत्रा ने तब नही समझा,लेकिन सुभाष सैनी ने इन दोनों चुनावो से एक बात को जरूर समझा कि रुड़की की राजनीति में जब तक सम्बंधित नेता अपने साथ अपनी बिरादरी का होना प्रदर्शित नही कर देता,तब तक दूसरी बिरादरी के लोग उसकी स्पोर्ट में नही आते। इसी सोच के साथ उन्होंने अपनी बिरादरी सैनी समाज को फोकस करते हुए उसे एकजुट करने का काम तो किया ही,साथ ही अपने पेशे पत्रकारिता के जरिये अन्य वर्गों में भी अपनी जड़े जमाते रहे। उनकी जड़े उनकी खुद की बिरादरी और अन्य वर्गों में कितनी मजबूत हुई है,यह वक्त बताएगा। लेकिन फिलहाल जारी निगम चुनाव में कहीं न कहीं भाजपा को वह गौरव गोयल की तरह ही खतरा नजर आने लगे हैं,ऐसा सूत्रों का कहना है।

यह बात सही है तो इस बात को पक्के तौर पर कहा जा सकता है कि कहीं न कहीं सुभाष सैनी अपनी बिरादरी को एकजुट करने में सफल रहे हैं। असल में यूं हरिद्वार जनपद में सैनी बिरादरी को मूलतः भाजपा भक्त के रूप में देखा व गिना जाता है। पिछले कई विधानसभा व इसी वर्ष का लोकसभा चुनाव इस बात का उदाहरण है। लेकिन यह भी सत्य है कि निकाय चुनाव में कोई भी व्यक्ति दल की कोई बहुत ज्यादा परवाह नही करता।

यही कारण है कि सैनियों की सुभाष सैनी के पक्ष में होती लामबंदी को भाजपा भांप गयी है। ऐसा दावा करते हुए सूत्रों का यह भी कहना है कि दिलचस्प रूप से भाजपा के कुछ रणनीतिकार जो सुभाष सैनी का अभी तक महज 15 सौ से 3 हजार मतों के बीच रह जाने का आंकलन कर उन्हें कोई तवज्जो देना उचित नही समझ रहे थे,अब वह उन्हें 10 हजार वोट से ज्यादा का कैंडिडेट मानते हुए सबसे ज्यादा चिंतित हैं। पहले पार्टी के कुछ नेताओं की सोच थी कि सुभाष सैनी को वोट काटने वाले डमी प्रत्याशी के रूप में प्रचारित कर देंगे,लेकिन चूंकि सुभाष सैनी का चुनाव लड़ना बहुत पहले से तय था तो यह प्रचार भी सफल नही हो पाया है। खैर भाजपा की चिंता केवल यही तक सीमित नही है। 15 हजार के लगभग सैनी मतदाताओं वाले रुड़की नगर निगम क्षेत्र में गैर सैनी मतदाताओं में भी पार्टी को सुभाष सैनी के धीरे धीरे मजबूत होने की सूचना मिल रही है। इससे भी कहीं ज्यादा परेशानी का सबब यह है कि कहीं सुभाष सैनी के मजबूत होने की बात को परम्परागत भाजपा विरोधी समझा जाने वाला मुस्लिम वर्ग न भांप जाए। वैसे यह खतरा कांग्रेस के लिए भी है। खैर इस सबसे निपटने के इंतजाम भाजपा कर रही है,यह दावा भी सूत्रों ने किया है। इसमें सूत्रों द्वारा दी गयी जानकारी अनुसार एक विशेष बैठक सुभाष सैनी को लेकर की गई। जिसमें रणनीति तैयार की गई,जिसके तहत पार्टी अपने स्थानीय सैनी नेताओं के साथ ही बाहरी सैनी नेताओं को भी बहुत जल्द सुभाष सैनी के बढ़ते कारवां को रोकने के लिए राजनीतिक इंतजामो के तहत यहां बुलाने वाली हैं। जिनमें उत्तर प्रदेश सरकार के मंत्री धर्म सिंह सैनी भी यहां आ सकते हैं,यह भी सूत्रों का कहना है।

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