खोल दूं पोल(2.) वाह! कथित समाजसेवक अशोक चौहान जी,सफाई वाली मशीन+जनता और “मरने भी दो यारो” का गजब संयोग


रुड़की(संदीप तोमर)। खोल दूं पोल के प्रथम भाग में हमने रेलवे रोड की बदहाली और इस मुद्दे पर नगर विधायक से लेकर इसी क्षेत्र में रहने वाले भाजपा के नेताओं को शर्म महसूस न होने का मामला उजागर किया था। खबर के असर में अगले ही दिन इस रोड के गड्ढे भर दिए गए थे और जल्द ही सड़क बनने की सूचना भी सामने हैं। खोल दूं पोल के आज भाग 2. में कांग्रेस से जुड़े एक ऐसे समाजसेवी का जिक्र होगा,जिन्होंने नगर निगम चुनाव शुरू होने की सुगबुगाहट में न सिर्फ रात दिन भाग दौड़ शुरू की,बल्कि स्वयं को रुड़की की जनता का सच्चा सेवक दिखाने की गरज से न सिर्फ लाखों रुपये खर्च कर साफ सफाई के लिए हाइड्रॉलिक वैक्यूम क्लीनर मशीन खरीद डाली,बल्कि कई दिनों तक यह मशीन ट्रैक्टर से जुड़कर रुड़की की सड़कों की सफाई करती भी दिखी,लेकिन नगर निगम चुनाव पीछे हटने की बात को शायद यही साहब सबसे पहले भांप गए और कुछ दिन बाद ही कथित समाजसेवी सहित यह मशीन शहर की जनता के बीच से ऐसे गायब हुई कि आज तक दिखाई नही दी। यहां कथित समाजसेवी के जनता के बीच से गायब होने का आशय उनके जनसेवा के बड़े बड़े दावों से अचानक पीछे हट जाने को लेकर है।

आज बात हो रही है राजनीतिक रूप से कांग्रेस से जुड़े अशोक चौहान की। अशोक चौहान व्यक्तिगत रूप से एक सज्जन,मिलनसार और
व्यवहारिक इंसान हैं। पेशागत रूप से शहरवासी उन्हें एक पब्लिक स्कूल के संचालनकर्ता के रूप में जानते हैं। सम्भव है कि स्कूल के जरिये वह कुछ या बहुत से छात्र-छात्राओं को फीस आदि का कोई लाभ पहुंचाकर भी समाजसेवा करते हों,किंतु लगभग 10 माह पूर्व उन्होंने नगर निगम चुनाव होने की सुगबुगाहट में आम जनता के सामने उसके बड़े सेवाकर्ता के रूप में प्रस्तुत किया था। दरअसल आज का विषय भी यही है और इसका उद्देश्य किसी भी रूप से अशोक चौहान के मान सम्मान को ठेस पहुंचाना या उनकी छवि खराब करना नही,बल्कि यह सवाल खड़ा करना है कि चुनाव सिर पर हों तो नेतागण किस तरह खुद को समाजसेवी दर्शाना शुरू कर देते हैं और यदि चुनाव न हों या नेताओं को जनता से कोई काम न पड़ रहा हो तो किस तरह वह उसे छोड़कर चुपचाप निकल लेते हैं?

रुड़की नगर निगम चुनाव गत वर्ष (2018) मई माह में प्रस्तावित थे। किन्तु परिसीमन का मामला कोर्ट में होने के कारण अभी तक नही हो पाए हैं। यूं कई बार कोर्ट निर्णयों को देखते हुए लगा कि अब चुनाव हों ही जायेंगे। ऐसे में हर बार पार्षद और मेयर पद के दावेदार सक्रिय भी हुए,लेकिन मामला ठंडा पड़ा तो यह लोग भी राजनीतिक रूप से ठंडे पड़ गए। लेकिन मेयर पद के एक दो दावेदार ही ऐसे रहे जो दौड़ से बाहर निकले। इनमें से कुछ तो तब चुप बैठे जब जातिगत रूप से उन्हें लगा कि सीट रिजर्व नही होगी। अन्यथा सभी समाजसेवक के रूप में जनता के बीच सक्रिय हैं। ऐसे ही नेताओं में शुमार कांग्रेस टिकट के दावेदार अशोक चौहान भी गत वर्ष पूरे सक्रिय थे। किंतु वह भी अचानक से जनता को किनारे कर गए। शायद इसका कारण उनके पुत्र की फ़िल्म में उनकी किसी स्तर पर व्यस्तता रहा हो। जो भी हो उनकी राजनीतिक स्थिति के और जनता से अचानक बनी दूरी के बीच उनके पुत्र की फ़िल्म का नाम “मरने भी दो यारो” बड़ा संयोग वाला है।

खैर बीते वर्ष 2018 के दिसम्बर माह में अशोक चौहान रुड़की की जनता के लिए कितने चिंतित थे?इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि यहां की सड़कों की साफ सफाई के लिए वह एक हाइड्रॉलिक वैक्यूम क्लीनर मशीन खरीद कर लाये और #DustFreeRoorkee का नारा देते हुए 30 दिसम्बर को अपने फेसबुक एकाउंट पर लिखकर रुड़की की जनता को सन्देश दिया कि अब रूड़की की सड़के होंगी हायड्रॉलिक वैक्यूम क्लीनर से साफ़। स्वच्छ और हरा भरा यही है हमारा सपना।
रूड़की शहर को साफ़ रखना हमारी ज़िम्मेदारी। ये हायड्रॉलिक वैक्यूम क्लीनिंग मशीन रूड़की की हर सड़क महोल्ले को पूर्ण रूप से साफ़ और डस्ट फ़्री करेगी और भविष्य में ऐसी और हायड्रॉलिक वैक्यूम क्लीनिंग मशीन हम लाएँगे ताकि रूड़की का कोना कोना धूल मिट्टी से मुक्त हो सके।
#DustFreeRoorkee

इसमें मशीन का वीडियो भी डाला गया था। इसके बाद कुछ रोज तक मशीन ने ट्रैक्टर के पीछे जुड़कर विभिन्न क्षेत्रों में सड़कों की सफाई भी की। इसके कुछ वीडियो अशोक चौहान द्वारा पोस्ट भी किये गए हैं। लेकिन इसके बाद अचानक से मशीन सड़कों से और अशोक चौहान जनता के बीच से गायब हो गए। इसके पीछे के वास्तविक कारण तो नही पता,किन्तु राजनीतिक हलकों में चर्चा है कि अशोक चौहान चुनाव पीछे हटने की बात को सबसे ज्यादा गम्भीरता से और सबसे पहले भांप गए थे। तभी उन्होंने जनता से दूरी बना ली। खैर राजनीति में यह सब चलता रहता है,किंतु एक बात तो है कि उक्त फेसबुक पोस्ट के अनुसार एक मशीन के बाद ऐसी और भी मशीनें लाने का दावा करने वाले श्री चौहान यदि यह मशीन नगर निगम को ही सौंप देते तो शहर की जनता के काफी काम आती।

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