संदीप तोमर
रुड़की। यह सही है कि जहरीली शराब कांड के खुलासे में हरिद्वार पुलिस ने बहुत तेजी के साथ काम करते हुए उल्लेखनीय सफलता पायी है और इसके लिए जिला पुलिस मुखिया को बधाइयां भी मिल रही है,किंतु जिस तरह इस मामले में जिला आबकारी अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई न करने को लेकर प्रदेश सरकार की निंदा होने के साथ ही तमाम सवाल खड़े हो रहे हैं,उसी तरह जिला पुलिस मुखिया द्वारा इस मामले में बाल्लूपुर व बिंडू खड़क हल्का(क्षेत्र)के दरोगा अनिल बिष्ट के खिलाफ किसी भी तरह की विभागीय कार्रवाई न करने को लेकर पुलिस महकमे की बाबत लोगों के मन में सवाल उठ रहे हैं कि आखिर वह अनिल बिष्ट पर इतना मेहरबान क्यों है?
अब जबकि यह भी साफ हो चुका है कि बाल्लूपुर गांव में कच्ची शराब का अवैध कारोबार लम्बे समय से चल रहा था तथा कल ग्रामीणों ने खुद आईजी अजय रौतेला के सामने साफ शब्दों में कहा कि आबकारी विभाग के साथ ही पुलिस को लाखों रुपये महीना जाता था तो यह जान लेना भी जरूरी है कि हलका दरोगा अनिल बिष्ट भी यहां कोई एक आध माह से नही बल्कि लगभग एक वर्ष से तैनात है। पांवटी,फकरेडी व भलस्वगाज के साथ ही बिंडू खड़क व बाल्लूपुर गांव अनिल बिष्ट के हलका अंतर्गत ही आते है। हलका शब्द को थोड़ा स्पष्ट करें तो इसे अंग्रेजी के बीट और हिंदी के क्षेत्र शब्द के रूप में समझा जा सकता है। अब यह दिलचस्प है कि इस बड़े कांड के बाद एसएसपी को बीट,क्षेत्र या हलके के दो सिपाही प्रवीण खत्री और सुरेंद्र तो दोषी नजर आए और उन्हें निलंबित कर दिया गया,किन्तु बीट,क्षेत्र या हलके के दरोगा अनिल बिष्ट के खिलाफ अभी तक कोई विभागीय कार्रवाई नही हुई है। ध्यान रहे कि जहां बाल्लूपुर गांव अवैध कच्ची शराब का हाट बाजार सा बना हुआ था,वहीं बाल्लूपुर के साथ ही बिंडू खड़क में सबसे ज्यादा मौते हुई हैं। यह भी अजीब है कि इकबालपुर चौकी के उस इंचार्ज गम्भीर सिंह को निलंबित किया गया,जिनके हलके में यह गांव आते भी नही थे। खैर अनिल बिष्ट पर महकमे की इस मेहरबानी की वजह को ग्रामीण नही समझ पा रहे हैं। इस बाबत विभिन्न प्रेस वार्ताओं में पत्रकारों ने भी पुलिस के आला अफसरों के समक्ष सवाल उठाया है,किन्तु न तो कोई स्पष्ट जवाब अधिकारियों ने दिया है और न ही कोई विभागीय कार्रवाई अनिल बिष्ट के खिलाफ हुई है। ऐसे में जिस तरह जिला आबकारी अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई न करने को लेकर प्रदेश सरकार की निंदा के साथ ही तमाम सवाल खड़े हो रहे हैं। उसी तरह आला पुलिस अधिकारियों की कार्यप्रणाली पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं।