(खोल दूं पोल-निगम चुनाव) अब अपने सैनी “सूरमाओं” की बिरादरी में स्थिति पर भी मंथन करे भाजपा,2022 के दृष्टिगत सैनी समाज में नकारों के भरोसे तो नही पार्टी??

रुड़की(संदीप तोमर)। नगर निगम का एक सैनी बाहुल्य क्षेत्र शेरपुर। इस ग्रामीण इलाके के बूथ संख्या 3 और 4 पर प्रत्याशियों को मिले मतों की स्थिति बताती है कि सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा को अब अपने बड़े सैनी “सूरमाओं” की उनके खुद के समाज में क्या स्थिति है?इस पर गम्भीरता से मंथन कर लेना चाहिए। खासतौर से 2022 के विधानसभा चुनाव को देखते हुए।

खबर में शेरपुर के बूथ संख्या 3 व 4 का ही उदाहरण दिया जा रहा है लेकिन यदि अन्य सैनी बाहुल्य इलाकों की बात भी करे तो भी एक बात साफ है कि भाजपा से जुड़े सैनी “सूरमा” अपनी बिरादरी के वोट को पार्टी के साथ जोड़े रखने में सिर्फ नाकाम ही नही बहुत-बहुत नाकाम साबित हुए हैं। खैर उदाहरण के लिए प्रस्तुत,शेरपुर के बूथ संख्या 3 व 4 की डिटेल में जाने से पूर्व यह जान लेना भी जरूरी है कि दोनों बूथों से बसपा प्रत्याशी राजेन्द्र बाडी को मिले 317 वोट इस लिहाज से अलग किये जा रहे हैं कि दलित बिरादरी भी गांव में इससे कुछ ज्यादा संख्या में मौजूद है। वैसे यह भी तय है कि भले कुछ ही सही पर इन 317 मतों में भी सैनी मत जरूर होंगे। अब अन्य प्रत्याशियों को मिले मतों की बात करें तो यहां सबसे अधिक 264 वोट निर्दलीय सुभाष सैनी को,दूसरे नम्बर पर भाजपा बागी (अब मेयर)गौरव गोयल को 260,तीसरे नम्बर पर कांग्रेस को 231और सबसे कम 156 बीजेपी को मिले। इस स्थिति से अंदाजा लगाया जा सकता है कि जिन सैनी “सूरमाओं” को भाजपा आज तक विभिन्न पद और सम्मान देती आयी है,क्या उसे अब इसे बारे में मंथन करने की जरूरत नही है?

यह पहली बार हुआ है कि सैनी बिरादरी ने इस हद तक भाजपा से किनारा किया है। उपरोक्त दोनों बूथों से सुभाष सैनी को मिले सबसे ज्यादा मतों की बात करें तो यह उनका ग्रह क्षेत्र होने के कारण भी प्रभावी माना जा सकता है लेकिन खुद जहां सुभाष सैनी को इस बात की टीस है कि गौरव गोयल को आखिर उनसे महज 4 कम 260 वोट कैसे चले गए,वहीं भाजपा को भी यह नही भूलना चाहिए कि यहां से 231वोट कांग्रेस को भी मिले है।

भाजपा को भी यह टीस होनी चाहिए कि यह वही सैनी समाज है जो इसी साल हुए लोकसभा चुनाव में बसपा से सैनी प्रत्याशी के रूप में डा.अंतरिक्ष सैनी के होने के बावजूद भाजपा के साथ बना रहा था। इसमें पार्टी से जुड़े सैनी “सूरमा” यदि अपने योगदान की कोई दलील दें तो वह इसलिए लागू नही होती कि पूरा लोकसभा चुनाव ही पीएम नरेंद्र मोदी के चेहरे पर हुआ था। सच कहें तो यह स्थानीय चुनाव ही पार्टी से जुड़े सैनी “सूरमाओं” की अग्नि परीक्षा था,जिसमें वह पूरी तरह फैल हुए हैं। और हां एक बात और यदि पार्टी इन्ही सैनी “सूरमाओं” के भरोसे बैठी रही तो उसे आगामी विधानसभा चुनाव में बड़ी दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा। क्योंकि इस चुनाव से सैनी “सूरमाओं” का बिरादरी में वजूद जगजाहिर हो गया है। वैसे भाजपा के सैनी नेता बिरादरी के लिए पार्टी द्वारा आरक्षित कर दी गयी कलियर विधानसभा सीट पर आज तक अपना वजूद कायम नही कर सके हैं, लेकिन वहां बिरादरी के नेताओं की आपसी गुटबाजी इस विफलता के कारण के रूप में उभरी है पर इस निगम चुनाव में तो कम से कम पार्टी से जुड़े सैनी नेताओं में कोई गुटबाजी ही नही थी।

अब अंत में भाजपा से जुड़े सैनी “सूरमाओं” की बात करें तो इनमें पहला नाम पिछड़ा वर्ग आयोग की अध्यक्ष पूर्व मंत्री स्व.डा.पृथ्वी सिंह विकसित की पुत्री डा.कल्पना सैनी का है लेकिन चूंकि वह एक संवैधानिक पद पर बैठी है तो चुनाव प्रचार में नही उतर सकती थी,पर क्या उनके पति डा.नाथीराम सैनी या परिवार के अन्य लोग चुनाव में सड़क पर नही उतर सकते थे?इस सवाल के जवाब में शायद जवाब मिले की सड़क पर उतरकर पूरा काम किया। लेकिन रिजल्ट क्या रहा? इस बात का शायद कोई जवाब न हो। पूर्व मंत्री स्व.डा.विकसित की राजनीतिक धरोहर को संभाल रही डा.कल्पना सैनी के परिजनों के मुकाबले एक दौर स्व.डा.विकसित के धुर राजनीतिक विरोधी रहे पूर्व मंत्री रामसिंह सैनी ज्यादा सफल रहे जो अच्छा खासा सैनी वोट कांग्रेस प्रत्याशी को दिला गए,यही नही उनकी पार्टी दूसरे स्थान पर रही।

ऐसे ही दूसरे सैनी “सूरमा” की बात करें तो नाम आता है पार्टी के पिछड़ा वर्ग प्रकोष्ठ की प्रदेश में कमान थाम रहे श्यामवीर सैनी का। श्यामवीर सैनी की बाबत वैसे अलग से पूरे पिछड़े वर्ग के लिहाज से भी अलग से बात की जा सकती है लेकिन सिर्फ उनकी खुद की बिरादरी सैनी समाज की ही बात कर लें तो निगम चुनाव में उनकी विफलता सबके सामने है। यह तब है जब एक बार पार्टी उन्हें कलियर से अपना प्रत्याशी बना चुकी है,एक बार राज्यमंत्री के दर्जे से नवाजकर लालबत्ती भी थमा चुकी है,पिछड़ा प्रकोष्ठ के प्रदेश अध्यक्ष फिलहाल वह हैं ही और रुड़की में घर होने के बावजूद नहर किनारे सिंचाई विभाग की एक आलीशान बड़ी कोठी भी वह वर्षों से पार्टी कृपा से प्राप्त किये हुए हैं।

तीसरे भाजपाई सैनी “सूरमा” के रूप में डीएवी कॉलेज के प्रधानाचार्य मनोज सैनी का नाम लिया जा सकता है। मनोज सैनी उसी शेरपुर गांव के रहने वाले है जिसके वोटों का उदाहरण यहां ऊपर पेश किया गया है। इस उदाहरण को देखते हुए भाजपा को मनोज सैनी की सिर्फ सैनी समाज ही नही उनके खुद के गांव में क्या स्थिति है?इस पर भी मंथन करना चाहिए। वैसे यह खुद मनोज सैनी के लिए भी आत्ममंथन का विषय है।

चौथे भाजपाई सैनी “सूरमा” के रूप में पार्टी से कलियर विधानसभा चुनाव लड़ चुके जयभगवान सैनी की बात की जा सकती है। बेशक उपरोक्त सभी भाजपाई सैनी सूरमाओं के इतर जयभगवान सैनी निगम क्षेत्र में निवास नही करते पर कलियर विधानसभा का एक बड़ा भाग निगम क्षेत्र में पड़ता है,ऐसे में सैनी वोटों के लिहाज से उनके राजनीतिक कद की समीक्षा भी पार्टी को करनी चाहिए। यूं और भी कई छुट पुट भाजपाई सैनी “सूरमा” है जिनकी यहां बात हो सकती है लेकिन अंतिम नाम आदेश सैनी का लेना सही रहेगा। यह सही है कि आदेश सैनी को आज तक पार्टी ने कुछ खास नही दिया है लेकिन इस दृष्टि से वह सैनी वोटों के लिहाज से पार्टी की समीक्षा से दूर नही हो सकते। उनकी सैनी समाज के बीच स्थिति पर भी पार्टी को मंथन करना चाहिए। कुल मिलाकर निगम चुनाव परिणाम और सैनी वोटों के पार्टी से खिसकने के दृष्टिगत 2022 के विधानसभा चुनाव को देखते हुए भाजपा को सोचना चाहिए कि जिन सैनी नेताओं के भरोसे वह क्षेत्र में है वो अपने समाज में नकारे तो नही हो गए?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *