नवीन गुलाटी की पांच साल की गुलाटियों को देख अपने गिरेबां में झांके भाजपा टिकट के अधिकांश दावेदार

संदीप तोमर


रुड़की। यूं तो राजनीति का चलन कुछ ऐसा हो गया है कि जो धनपति बना,वही किसी राजनीतिक पद को पाने की छटपटाहट में लग जाता है। समाज सेवा की हो या न की हो लेकिन होर्डिंग्स और खम्बों पर ऐसे लोग समाजसेवी के रूप में झूलते नजर आते हैं। वैसे समाजसेवा और राजनीति दोनों अलग-अलग पहलू हैं। किंतु फिर भी मान लें कि राजनीतिक पद पाने की चाह में लगे लोगों ने समाजसेवा भी की है तो भी यह सवाल उठता है कि जिस राजनीतिक पद के लिए यह लोग संघर्ष कर रहे हैं,उस पद के अंतर्गत आने वाली सेवाओं का लाभ जनता तक पहुंचाने,पद की सेवाओं में कमियों की बात उठाने को लेकर उन्होंने कितना संघर्ष किया है या उन्हें उन समस्याओं की बाबत कितनी जानकारी है जिनका निराकरण वह उस पद पर जाकर कर सकते हैं,जिसके लिए वह संघर्षरत हैं।
यह सब बातें आगामी मेयर चुनाव को लेकर भाजपा टिकट के अधिकांश दावेदारों पर बहुत प्रासंगिक बैठती है। भाजपा दावेदारों पर इसलिए क्योंकि पिछले मेयर यशपाल राणा कांग्रेस के थे,वह चुनाव भले भाजपा से बागी होकर निर्दलीय जीते थे,लेकिन बाद में पूरी तरह कांग्रेस में समाहित हो गए थे। ऐसे में यह वास्तव में बड़ा सवाल है कि भाजपा नेताओं ने विपक्षी के तौर पर यशपाल राणा के सही काम को कितना सही कहा?और गलत काम को कितना गलत कहकर,उसका विरोध किया? कौन भाजपा नेता बीते पांच साल निगम के कार्यों को लेकर सवाल जवाब करता रहा?विशेष रूप से अब जो मेयर पद हेतु भाजपा टिकट के दावेदार हैं,उनमें से किसने और कब निगम के कार्यों को लेकर आवाज उठायी?या कहें कि किसी गलत काम को लेकर बतौर विपक्षी यशपाल राणा का विरोध किया?इस बाबत एक सरसरी नजर दौड़ाई जाए तो नतीजा लगभग सिफर ही नजर आता है,बस दो नाम छोड़कर। एक संजय अरोड़ा और दूसरा नवीन गुलाटी। संजय अरोड़ा ने साफ सफाई व जल भराव आदि को लेकर कई कार्यक्रम किये,किन्तु नवीन गुलाटी ने निगम के अनेक मसलों को लेकर न सिर्फ बार-बार आवाज उठाई बल्कि ट्रैफिक लाल बत्ती के मसले को लेकर सीधा सीधा मेयर यशपाल राणा से पंगा भी लिया। विधायक प्रदीप बत्रा के संग कांग्रेस से भाजपा में आये नवीन गुलाटी मूलतः व्यापारी नेता हैं। अब चूंकि वह वाया प्रदीप बत्रा भाजपा में हैं तो उन्होंने भी मेयर टिकट के लिए ताल ठोकी है,वैसे यह भी कहा जाता है कि गुलाटी बत्रा की उस टीम का हिस्सा हैं कि यदि प्रदीप बत्रा बसपा में होते तो शायद नवीन गुलाटी भी बसपा में ही होते। उनकी दावेदारी पर भाजपा संगठन क्या और किस रूप में विचार करेगा?या फिर हरिद्वार में पंजाबी को टिकट दे दिए जाने के चलते यहां गुलाटी समेत किसी पंजाबी की दावेदारी पर विचार ही नही होगा?यह भाजपा संगठन का विषय है,किन्तु भाजपा टिकट के अधिकांश दावेदारों को बीते पांच वर्ष और नवीन गुलाटी को ध्यान में रखकर अपने गिरेबां में एक बार झांकना जरूर चाहिए। हालांकि यहां खबर का मकसद किसी की योग्यता पर सवाल खड़े करना कतई नही। भाजपा टिकट के सभी दावेदारों की अपनी अपनी योग्यताएं और कार्य क्षमता है, कई वास्तव में समाजसेवी भी हैं और जनप्रिय भी। किन्तु अधिकांश भाजपा टिकट के दावेदारों ने बीते पांच वर्ष निगम के सही गलत कामो या पूर्व मेयर यशपाल राणा की कार्यप्रणाली को लेकर क्या रवैय्या अपनाया?इस पर आम जनता की भी निगाह है और चुनाव के दौरान भी रहेगी। ऐसे में नवीन गुलाटी की दावेदारी पर भाजपा संगठन का निर्णय अपनी जगह जो हो,हो सकता है लेकिन यह तो सबके सामने है ही कि अतिक्रमण का मसला हो,लाल बत्ती प्रकरण हो,शेरपुर बारात घर मामले में प्रशासन से उलझने की बात हो,पुलिस प्रशासन की बैठकों में निगम के निर्णयों के खिलाफ सुझाव देने और इन बैठकों में पुलिस अफसरों से उलझ जाने की घटनाएं या फिर रेहड़ी ठेली और पार्किंग का मसला,हर मसले पर नवीन गुलाटी की गुलाटियों ने पूर्व मेयर यशपाल राणा और निगम प्रशासन की नाक में दम तो किये ही रखा।

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