चैम्पियन का एक ही तीर से देशराज से लेकर चौ.कुलवीर सिंह तक पर निशाना,और भी कई चपेट में,जानिए कौन-कौन?

रुड़की(संदीप तोमर)। चार बार से खानपुर के विधायक कुंवर प्रणव सिंह चैम्पियन की गतिविधियों या उनसे जुडकर होने वाली घटनाओं को लेकर अक्सर आम लोग एक धारणा बना लेते हैं कि चैम्पियन बिना कुछ सोचे समझे कुछ भी कर डालते हैं। या फिर लापरवाह हो वह कोई भी बयान दे देते हैं। यदि आप भी ऐसा ही समझते है तो फिर शायद बकौल चैम्पियन आप भी उन लोगों में शामिल हैं, जो चैम्पियन को केवल पांच प्रतिशत ही जानते हैं। चैम्पियन के अनुसार उनके 95 प्रतिशत हिस्से में एक लेखक,खिलाड़ी, साहित्यकार, समाजसेवी, विजनरी सोच रखने वाला एक इंसान,एक पति,एक पिता, एक जनसेवक,एक साधारण इंसान और एक सर्व धर्म सर्व जाति को मानने वाला व्यक्ति मौजूद है। हो सकता है कि चैम्पियन का यह दावा प्रतिशत के लिहाज से कुछ आगे पीछे हो लेकिन झबरेड़ा भाजपा विधायक देशराज कर्णवाल से जारी वाकयुद्ध को देखते हुए कहा जा सकता है कि चैम्पियन के भीतर एक ऐसा राजनीतिज्ञ छुपा है जो सौ प्रतिशत नही बल्कि इससे भी कही आगे है।

इस मसले को लेकर सभी अपने अपने तरीके से सोच सकते है। किन्तु यहां जिस बात पर गौर किया जा रहा है उसे जानने के बाद यह आसानी से कहा जा सकता है कि कम से कम चैम्पियन का कोई बयान यूं ही नही होता। बल्कि हाल फिलहाल उनके बयानों को देखते हुए लगता है कि वह पूरी तरह से एक मंजे हुए राजनीतिज्ञ का ना सिर्फ रुप ले चुके है बल्कि यदि गहराई से देखा जाये तो वह राजनीति की ऐसी ऐसी तिकडम भी जान गये है जो राजनीति के किसी कुशल खिलाड़ी के पास ही होती हैं। मसलन विधायक देशराज कर्णवाल के मसले में बात की जाये तो उन्होंने जहां ना सिर्फ देशराज कर्णवाल को कई तरह से उलझा दिया है और इसमे सबसे ज्यादा कर्णवाल के लिए परेशानी का सबब प्रमाण पत्र का मसला हो सकता है,यूं चाहे यह मामला बकौल देशराज कर्णवाल झूठा भी हो,किन्तु कागजी तौर पर मामला जितना आगे बढ़ेगा,उतनी दिक्कत तो बढ़ेगी ही। इधर देशराज कर्णवाल, चैम्पियन के खिलाफ बयानबाजी को लेकर चैम्पियन के सजातीय गुर्जर समाज मे भी लगातार आलोचना का शिकार हो रहे हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि चाहे चैम्पियन का विरोधी गुर्जर भी हो लेकिन लंढौरा रियासत से वह भावनात्मक रुप से जुड़ा हुआ है। या यूं कह सकते है कि कर्णवाल गुर्जर समाज के किसी साधारण नेता के खिलाफ बयानबाजी नही कर रहे बल्कि एक स्थापित गुर्जर नेता के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं। जबकि उनके चुनाव क्षेत्र झबरेड़ा की पूरी राजनीति गुर्जर मतदाताओं पर टिकी है। अब यदि देशराज कर्णवाल की बात की जाये तो वह दलित समाज में तुलनात्मक दृष्टि से उस मुकाम पर नही पहुंच पाये हैं। जिस मुकाम पर गुर्जर बिरादरी में चैम्पियन हैं। हालांकि देशराज समर्थक इस बात को गलत बताते हुए देशराज की गिनती बड़े दलित नेता के रूप में करते हैं। खैर चैम्पियन की उनके खिलाफ बयानबाजी अपनी जगह अभद्र या गलत हो सकती है, किन्तु राजनीतिक पैतरेबाजी की दृष्टि से देखे तो कल ही कल में चैम्पियन ने एक तीर से कई नही बल्कि अनेक निशाने साधते हुए शुक्रवार दोपहर में देशराज कर्णवाल को दहाड़ कर चुनौती दी तो इसी आड़ में अपने क्षेत्र के सर्व समाज के लोगों के साथ भी बैठक कर ली। ये ही नही बीती रात्री पूर्व विधायक चौधरी यशवीर सिंह व उनके पुत्र की भाजपा में सदस्यता के उस कार्यक्रम का पूरा मजमा भी चैम्पियन ने लूट लिया, जिसका ताना बाना देशराज कर्णवाल के इर्द-गिर्द बुना हुआ था। गौर से देखे तो यह भी सामने आता है कि चैम्पियन ने चौधरी यशवीर सिंह के अनुज और उनसे राजनीतिक रुप से छत्तीस का आंकड़ा रखने वाले चौधरी कुलवीर सिंह के खेमे मे भी देशराज कर्णवाल को राजनीतिक रूप से संदिग्ध कर दिया है। यहां ध्यान रहे कि कर्णवाल अभी तक चौधरी कुलवीर सिंह के साथ ही कदम ताल कर झबरेड़ा में राजनीति करते आ रहे हैं। इधर चैम्पियन की तिकडम से वह चौधरी यशवीर खेमे में जा खड़े हुए तो वहां भी उनकी सदस्यता में देशराज को ही पूर्व में बाधक होना बताकर चैम्पियन ने यशवीर खेमे के मन में भी उनकी बाबत शंकाएं डाल दी तो देशराज की जीत में अपने ताऊ जी का अहम योगदान बताकर झबरेड़ा क्षेत्र में चौधरी कुलबीर सिंह के राजनीतिक वर्चस्व को भी चुनौती दे डाली। सनद रहे कि देशराज कर्णवाल अपनी जीत में चौधरी कुलबीर सिंह का अहम रोल बताते आये है। इसी तरह देशराज के पीछे कथित रूप से अपने विरोधी गुर्जर नेताओ का हाथ बताकर उन्हें छुटा हुआ कारतूस करार दे,उन पर निशाना साधने से भी चैम्पियन नही चूके हैं। खैर यह सब तो साफ है लेकिन कर्णवाल को रुड़की के नेहरु स्टेड़ियम में चुनौती देने के मामले को अभी तक राजनीति के घाघ लोग भी समझ नही पाये हैं। वह केवल इसमें इतना अंदाजा लगा रहे है कि चैम्पियन इस जरियें रुड़की की राजनीति में पैर पसार रहे है। हालांकि इस बाबत अभी साफ कुछ नही कहा जा सकता, किन्तु उपरोक्त सबकुछ जान कर कहा जा सकता है कि चैम्पियन सिर्फ खेल के ही चैम्पियन नही, वास्तव में राजनीति के भी चैम्पियन हैं। हां रुड़की की बाबत राजनीति के घाघ लोगों की बात सही है तो विधायक प्रदीप बत्रा को भी सावधान हो जाना चाहिए,क्योंकि शासन के नए परिसीमन अनुसार नगर निगम रुड़की से भी चैम्पियन अधिकृत रूप से जुड़ गए हैं। हालांकि कोर्ट निर्णय अभी बाकि है।

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